रिजल्ट क्यों आ रहा है कम आईएएस का???
आईएएस बनने के लिए बहुत मेहनत की आवश्यकता होती है। सब लोग बोलते है और ये सही भी है।लेकिन जैसे कि हर साल आईएएस परीक्षा के परिणाम आते है उनमें लगातार हिंदी माध्यम के बच्चो को परेशानी में डाल दिया है। क्योंकि हर साल परिणाम घटते जा रहे है और इंग्लिश में परिणाम बढ़ते जा रहे है। हमे अफसोस होना चाहिए कि ये सब सही है।
हमे थोड़ा खुश होना चाहिए कि हिंदी माध्यम अभी 0 पर नहीं पहुंचा है। कितना सबर करें हम और हम हिंदी माध्यम वाले ही क्यों????
आखिरकार हिंदी माध्यम का रिजल्ट की क्यों बेकार होता है हर साल????
इसमें किसीको
दोष देना अच्छा नहीं है और ना ही सही है। लेकिन फिर क्यों ही फी माध्यम के छात्रों का ही परिणाम क्यों खराब हो रहा है।
सबसे बड़ी वजह हम खुद है हम सवाल नहीं उठते सरकार पर। और ना ही सिकायत करते है, तभी कोई भी हम पर राज करके चला जाता है चाहे एक चाय वाला हो या विदेशी।
सब हमारे वजह से ही है।
फिर हम क्यों सवाल नहीं उठाते।
हमारे दिमाग में धर्म रखा है इसलिए हम कुछ कर नहीं पाते।
उपरोक्त में साफ साफ लिखा है कि कैसे हमारे आईएएस के परिणाम गिरते जा रहे है। हमे आगे बढ़कर आवाज़ उठाने की आवश्यकता है। ना कि दूसरों की बाट को मानना ।
करते रहेंगे जो हमारा फ़र्ज़ है। बस सरकार पर उंगली मत उठा देना। सरकार हमसे है ना कि हम सरकार से। कुछ सोचते है कि सरकार को कभी कुछ नहीं बोलना चाहिए। बोल अपने हक के लिए बोलो लड़ो अपने हक के लिए।
बस यही काम करना है हमें अपनी हिंदी को पहली जैसी बनाने के लिए लड़ना तो पड़ेगा।
क्या 662011 के बाद हिंदी माध्यम के विद्याथीर्यों पर गया की वो प्रतिशत से सीधे 2 प्रतिशत आ पहुंच गए । इसके लिए जिम्मेदार कौन है ये हमें भली भांति पता है लेकिन फिर भी हम गांधी जी के ग्रामीण भारत को अकाल मौत मरते हुए देख रहे हैं और हमारे इसी अचेतन के कारण अंग्रेजीकरण स्कूली शिक्षा भी चपेट में ले चुकी है । पहले बात युपीएसी में हिंदी माध्यम की स्थिति पर कर लें ।2011 में जब से सी सेट लागू किया है तब से हिंदी माध्यम को किनारे करने की दिशा में काम शुरू हो गया था।
शुरूआत मैं मेरी कुछ पंक्तियों से करता है । इन पंक्तियों में हर हिंदी माध्यम के विद्यार्थी के भाव है की सीमित दायरे में हिंदी माध्यम कब तक इस तरह जीता रहेगा सपना देखा था वह भी आखों के सामने टूटे लगेगा आईएएस बनने की कसम से खाई उसको कोई कैसे भुलाए हर कदम पर जब अंग्रेजी संक्रमण की बूंदें दूरी बनाने को कहें ।। संघ लोक सेवा आयोग , यूपीएससी ने अपनी परीक्षा 2019 के परिणाम आ चुके है । एक था हिंदी माध्यम " की पटकथा पूर्ण रूप से लिखी जा चुकी है । अंग्रेजी माध्यम के लिए दरबार पूरी तरह सज चुके है हिंदी माध्यम फिर से बड़े बड़े माफियाओं की भेंट चढ़ने की तैयारी में है । गांव से कुछ साथी और आ रहे है उन सपनों के साथ जिन सपनों को एक था हिंदी माध्यम की पटकथा पूर्ण होने से पहले ही मार दिया गया । हर बार की तरह इस बार भी परीणाम हिंदी अंग्रेजी की बहस 10 से 15 दिन के लिए छेड दी है । वैसे भी हमारे पास 10,15 दिन ही होते हैं क्योंकि बाकी दिन हम अपने अपने नेताओं के उत्साहवर्धन के लिए नारे रूपी जड़ी - बूटी तैयार करते है । हिंदी मुस्लिम मंदिर मस्जिद वाट्सहप विश्वविद्यालय पर व्याख्यान हैं । हमारे पास इतना समय नहीं है कि लुप्त होती हिंदी को बचा सके । अकाल मौत मर रहे गांधी के ग्रामीण भारत बचा सके । तथाकथित विद्वानों के लिए प्रशासनिक सेवा का परिणाम बहस का मुद्दा मिल चुका है । कोचिंग संस्थान का बाजार सज चुका है । इस बाजार की चकाचौंध फिर से ग्रामीण भारत को भ्रमित करने की तैयारी कर ली है । हमें गर्व करना चाहिए की अभी हम शून्य पर नहीं पहुंचे प्रशासनिक अकादमी मसूरी की रिपोर्ट रिपोर्ट पर गर्व कीजिए की 2013 में हिंदी माध्यम 17 % होते हैं वहीं 2014 में 2.1 प्रतिशत मतलब 6 छात्र , 2015 में 4.8 प्रतिशत 15 छात्र , 2016 में 3.45 % छात्र , 2017 में 4.5 प्रतिशत 8 2018 में 2.16 % मतलब 8 छात्र 2019 में भी लगभग 2 % के आसपास हिंदी माध्यम के छात्र रहे हैं । गर्व कीजिए हमारे समाज की अचेतन अवस्था हमारे हुक्मरानों की अहमवादिता भाषाई पूर्वाह्न से कुठित ग्रसित लोगों के बावजूद है शून्य पर नहीं पहुंचे । मेरी जानकारी अनुसार अबकी बार के परिणाम में।।।
आज के लिए इतना ही
मेरा नाम है Satendra Singh
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ReplyDeleteVery good
ReplyDeleteThank you
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